गोरखपुर में नेपाल में हो रही भारी बारिश का प्रभाव गहराने लगा है, जिससे जिले की प्रमुख नदियाँ—राप्ती और रोहिन—उफान पर हैं और खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। प्रशासनिक आंकड़ों के अनुसार, राप्ती नदी का जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है, जिससे यह एक बार फिर तबाही मचाने के कगार पर है। वर्तमान में, गोरखपुर के 29 गांव बाढ़ के पानी में डूब चुके हैं, राहत कार्यों के लिए 85 नावें तैनात की गई हैं।
हालांकि, पिछले 24 घंटों में राप्ती नदी के जलस्तर में 20 सेंटीमीटर की मामूली गिरावट दर्ज की गई है। वहीं, सरयू और रोहिन नदी के जलस्तर में वृद्धि के कारण 24 अन्य गांव बाढ़ से घिरे हुए हैं। इन क्षेत्रों में प्रशासन ने 59 नावों की व्यवस्था की है, ताकि राहत कार्य तेजी से हो सकें।
राप्ती नदी का जलस्तर खतरे के निशान से 1 मीटर ऊपर
केंद्रीय जल आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, मंगलवार को बर्डघाट में राप्ती नदी का जलस्तर 75.950 मीटर पर पहुंच गया है, जो कि खतरे के निशान से 1 मीटर ऊपर है। नदी में जलस्तर हर घंटे धीमी गति से घट रहा है, लेकिन स्थिति में कोई खास सुधार नहीं दिख रहा है। सरयू नदी का जलस्तर 91.780 मीटर और रोहिन नदी का जलस्तर 85.45 मीटर पर बह रहा है, दोनों नदियाँ खतरे के निशान से काफी ऊपर हैं।
ग्रामीणों की कठिनाइयाँ और राहत की आस
बाढ़ के कारण गोरखपुर के बहरामपुर दक्षिणी, बहरामपुर उत्तरी और शेरगढ़ के दर्जनों गांव जलमग्न हो गए हैं। यहां के लोग अपनी जान बचाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं—कुछ नावों के सहारे सफर कर रहे हैं, जबकि अन्य अपने मकानों की ऊपरी मंजिलों में शरण ले रहे हैं। बाढ़ का पानी महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों के लिए सबसे अधिक समस्या उत्पन्न कर रहा है। हर कोई इस आशा में है कि कब जलस्तर घटेगा और वे अपनी सामान्य जिंदगी में लौट सकेंगे।
गोरखपुर में पांचवीं बार बाढ़ का सामना
गोरखपुर के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि एक ही वर्ष में पांच बार बाढ़ ने तबाही मचाई है। सामान्यतः एक बार बाढ़ का सामना करने वाले ग्रामीण इस बार लगातार पांच बार आपदा का सामना कर चुके हैं। अब उनकी आशंकित निगाहें आसमान की ओर टिकी हुई हैं, उम्मीद करते हुए कि जलस्तर जल्द ही घटेगा। लेकिन लगातार बढ़ते जलस्तर के बीच राहत की उम्मीद अभी भी दूर लग रही है।
नदियों के बढ़ते जलस्तर और निरंतर बारिश से गोरखपुर के लोग इस समय बेहद कठिन परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं। प्रशासन की प्रयासें जारी हैं, लेकिन प्रकृति की इस विनाशकारी लीला के आगे स्थिति अभी तक काबू में नहीं आ पाई है।