बिहार के एक छोटे से शहर में, सिरो देवी जैसी दाइयां एक समय बच्चियों को मारने के लिए मजबूर थीं, लेकिन उन्होंने इस कुप्रथा के खिलाफ आवाज उठाकर कई नवजात बच्चियों की जान बचाई। ये कहानी उन बहादुर महिलाओं की है, जिन्होंने अपनी मान्यताओं और परंपराओं के खिलाफ जाकर एक नई शुरुआत की।
भारत के एक छोटे से शहर में, सिरो देवी एक नवजात बच्ची मोनिका को गले लगाकर रो रही थीं। करीब 30 साल पहले, जब मोनिका का जन्म हुआ था, तो उसे छोड़ दिया गया था। आज मोनिका उस जगह वापस लौटी थी जहां वह पैदा हुई थी। यह मिलन एक साधारण पुनर्मिलन नहीं था; इसके पीछे एक दर्दभरी कहानी छिपी थी।
नवजात बच्चियों की हत्या का दौर
1990 के दशक में, बिहार के कटिहार ज़िले में, सिरो देवी और उनके जैसी दाइयों पर नवजात बच्चियों को मारने का दबाव रहता था। माता-पिता की मांग पर, उन्हें नवजात बच्चियों को मारने के लिए मजबूर किया जाता था। वे या तो केमिकल चटा कर या फिर बच्चियों की गर्दन मरोड़ कर उनकी हत्या कर देती थीं।
हकिया देवी, जो उस समय की सबसे उम्रदराज़ दाई थीं, ने बताया कि उन्होंने 12-13 बच्चियों को मार दिया था। धरमी देवी ने स्वीकार किया कि उन्होंने 15-20 बच्चियों को मारा था। ऐसे कई मामले थे, जिनका सही-सही आंकलन नहीं किया जा सका। 1995 में, एक एनजीओ की रिपोर्ट के अनुसार, सिर्फ 35 दाइयां हर साल एक ज़िले में 1000 से अधिक बच्चियों को मार रही थीं।
बदलाव की शुरुआत
हालांकि, 1996 तक, इस घातक कुप्रथा के खिलाफ आवाज उठने लगी। अनिला कुमारी, जो एक सामाजिक कार्यकर्ता थीं, ने इन दाइयों के साथ काम करके नवजात बच्चियों की हत्या को रोकने का प्रयास किया। उन्होंने दाइयों से सीधा सवाल किया, “क्या तुम अपनी बेटी के साथ भी यही करोगी?” इस सवाल ने उन दाइयों को सोचने पर मजबूर कर दिया।
धीरे-धीरे, इन दाइयों ने नवजात बच्चियों की हत्या करने से मना कर दिया। सिरो देवी ने बताया कि अब जब भी कोई उनसे बच्ची को मारने को कहता, तो वे उस बच्ची को अनिला मैडम के पास ले जाने का सुझाव देतीं। इस बदलाव के कारण, उन्होंने कम से कम पांच नवजात बच्चियों को बचाया।
मोनिका की कहानी
मोनिका भी उन बच्चियों में से एक थीं, जिन्हें सिरो देवी ने बचाया था। उन्हें बचाने के बाद, अनिला कुमारी ने मोनिका को पटना के एक एनजीओ में भेज दिया, जहां से उन्हें गोद लिया गया। आज, मोनिका एक खुशहाल परिवार में रह रही हैं, लेकिन वह इस बात से अवगत हैं कि उन्हें किस परिस्थिति में बचाया गया था।
आज भी जारी है संघर्ष
शिशु हत्या की घटनाएं अब दुर्लभ हैं, लेकिन लिंग के आधार पर भ्रूण हत्या के मामले आज भी सामने आते हैं। कई स्थानों पर बच्चियों के जन्म के बाद उन्हें छोड़ दिया जाता है। हाल ही में, कटिहार में दो नवजात बच्चियों को सड़क किनारे छोड़ दिया गया था, जिनमें से एक की मौत हो गई थी और दूसरी को गोद ले लिया गया था।
उम्मीद की किरण
इस कहानी को जानने के बाद, यह स्पष्ट होता है कि बदलाव संभव है। सिरो देवी और अनिला कुमारी जैसी महिलाओं की कोशिशों के कारण आज कई बच्चियां जीवित हैं और उन्हें एक नया जीवन मिल रहा है।
निष्कर्ष: इस कहानी में छिपे दर्द और संघर्ष के बावजूद, यह उम्मीद की एक किरण भी दिखाती है कि समाज में बदलाव लाया जा सकता है। सिरो देवी जैसी दाइयों ने यह साबित कर दिया है कि एक छोटे से गांव की महिलाएं भी बड़े बदलाव का हिस्सा बन सकती हैं।
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