उत्तर प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव में बसपा ने लंबे समय बाद चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया है। इस चुनाव को 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है। आइए जानते हैं कि बसपा को उपचुनाव लड़ने का फैसला क्यों करना पड़ा और उनकी रणनीति क्या है।
बसपा की मौजूदा स्थिति
बसपा 2012 के बाद से उत्तर प्रदेश की सत्ता से बाहर है। जिसने कभी उत्तर प्रदेश में चार बार सरकार बनाई, उस पार्टी के पास आज विधानसभा में मात्र एक विधायक बचा है। 2007 के बाद से बसपा का प्रदर्शन लगातार खराब होता गया और प्रदेश में कभी 30% से अधिक वोट पाने वाली पार्टी का हिस्सा अब घटकर लगभग 13% रह गया है। इस गिरावट ने पार्टी के अंदर बेचैनी पैदा कर दी है और उसे फिर से अपनी खोई हुई साख वापस पाने के लिए उपचुनाव लड़ने का फैसला करना पड़ा।
क्यों उपचुनाव में उतर रही है बसपा?
बसपा के संस्थापकों का मानना था कि जितने अधिक चुनाव लड़े जाएंगे, पार्टी उतनी ही मजबूत होगी। यही रणनीति अपनाकर बसपा ने यूपी की सत्ता पर कब्जा किया था। हालांकि, बाद में पार्टी ने उपचुनाव न लड़ने का फैसला कर लिया, जिसके चलते पार्टी की स्थिति और कमजोर हो गई। अब बसपा ने अपनी पुरानी रणनीति को दोबारा अपनाने का फैसला किया है। मंगलवार को लखनऊ में पार्टी की एक बैठक भी हो रही है, जिसमें उपचुनाव की रणनीति तय की जाएगी।
आकाश आनंद की वापसी
बसपा प्रमुख मायावती ने पार्टी में कई अहम बदलाव किए हैं, जिनमें सबसे प्रमुख है भतीजे आकाश आनंद की वापसी। लोकसभा चुनाव के दौरान हटाए गए आकाश आनंद को फिर से पार्टी में महत्वपूर्ण पदों पर बहाल किया गया है। वह अब पार्टी की मशीनरी को फिर से मजबूत बनाने में जुट गए हैं। यह बदलाव पार्टी कार्यकर्ताओं को यह संदेश देने के लिए है कि बसपा ने अभी मैदान नहीं छोड़ा है और वह अपने कोर वोट बैंक को वापस पाने के लिए संघर्षरत है।
बसपा की टिकट वितरण रणनीति
बसपा ने उपचुनाव के लिए अपनी टिकट वितरण रणनीति में बदलाव किया है। उसने अब तक दो सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए हैं, जिनमें से एक है मिल्कीपुर, जो उत्तर प्रदेश की सबसे हॉट सीट मानी जा रही है। इसके अलावा, मीरापुर सीट पर बसपा ने चंद्रशेखर आजाद की पार्टी के एक नेता को तोड़कर अपना उम्मीदवार बनाया है। यह बदलाव मुसलमानों को कम टिकट देने की रणनीति के तहत किया गया है, क्योंकि पिछले चुनावों में उन्हें थोक में टिकट देने के बावजूद बसपा को अपेक्षित परिणाम नहीं मिले।
बसपा के सामने चुनौतियां: सपा और कांग्रेस
बसपा प्रमुख मायावती लगातार सपा और कांग्रेस पर निशाना साध रही हैं। वह अपने वोटरों को यह विश्वास दिलाने की कोशिश कर रही हैं कि सपा और कांग्रेस ने कभी जातीय जनगणना और आरक्षण के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया। मायावती ने कांग्रेस से पूछा कि जब वह केंद्र में थी, तब जातीय जनगणना क्यों नहीं कराई गई? इसके अलावा, वह कांग्रेस-सपा और बीजेपी की आरक्षण पर चुप्पी को भी निशाने पर ले रही हैं।
चंद्रशेखर आजाद की चुनौती
बसपा को सपा-कांग्रेस के गठबंधन के अलावा चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) से भी चुनौती मिल रही है। चंद्रशेखर की नजर भी बसपा के दलित वोट बैंक पर है, जिसे वे अपनी ओर खींचना चाहते हैं।
किन सीटों पर हो रहा है उपचुनाव?
उत्तर प्रदेश की 10 सीटों में से कोई भी सीट वर्तमान में बसपा के पास नहीं है। इनमें से पांच सीटों पर सपा ने 2022 के चुनाव में जीत दर्ज की थी, जबकि अन्य सीटें बीजेपी और उसके सहयोगियों के पास थीं। अब देखना होगा कि उपचुनाव में बसपा की रणनीति कितनी सफल होती है और वह कितनी सीटें अपने पक्ष में कर पाती है।
उपचुनाव के नतीजे बसपा के लिए संजीवनी साबित हो सकते हैं, क्योंकि अगर पार्टी यहां अच्छा प्रदर्शन करती है, तो यह 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए एक मजबूत नींव साबित हो सकता है।