सामाजिक न्याय की ओर कदम: केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने यूपीएससी के लेटरल एंट्री विज्ञापन को रद्द करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि इस विवाद के पीछे पीएम मोदी की सोच स्पष्ट है: “आरक्षण के सिद्धांतों को नकारना संविधान विरोधी है।”
संगठित विवाद: यूपीएससी द्वारा 17 अगस्त को जारी किए गए 45 वरिष्ठ पदों के लेटरल एंट्री विज्ञापन ने राजनीतिक विवाद उत्पन्न कर दिया। इस विज्ञापन में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं था, जिससे विभिन्न दलों और संगठनों ने इसका विरोध किया। केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने स्पष्ट किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा संविधान और आरक्षण के सिद्धांतों का समर्थन करते आए हैं और इस विवाद को सुलझाने के लिए आवश्यक कदम उठाए हैं।
विवाद का कारण: यूपीएससी के विज्ञापन में सचिव, उप-सचिव और निदेशक जैसे महत्वपूर्ण पदों पर सीधी भर्ती की पेशकश की गई थी, जिसमें आरक्षण का प्रावधान नहीं था। आलोचकों का कहना है कि इस प्रक्रिया से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियों के अधिकारों का उल्लंघन होगा। इस मुद्दे ने राजनीतिक दलों के बीच तीखा विवाद पैदा कर दिया है।
लेटरल एंट्री की प्रक्रिया: लेटरल एंट्री के तहत सरकारी नौकरियों में निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की सीधी भर्ती की जाती है। यह प्रक्रिया मिड और सीनियर लेवल पर लागू होती है, जिसमें उम्मीदवारों को आमतौर पर तीन से पाँच साल तक के अनुबंध पर नियुक्त किया जाता है। यूपीएससी ने 24 केंद्रीय मंत्रालयों में इन पदों के लिए भर्ती का विज्ञापन जारी किया था।
सरकारी प्रतिक्रिया: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने इस विवाद को हल करने के लिए यूपीएससी को 17 अगस्त के विज्ञापन को रद्द करने का आदेश दिया है। जितेंद्र सिंह ने कहा कि यह कदम सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है। सरकार का उद्देश्य है कि सभी भर्ती प्रक्रियाएं संविधान और आरक्षण के सिद्धांतों के अनुरूप हों।
विपक्ष की प्रतिक्रिया: कांग्रेस नेता राहुल गांधी और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने इस निर्णय की आलोचना की है। राहुल गांधी ने इसे संविधान और आरक्षण व्यवस्था पर हमला बताया और कहा कि केंद्र सरकार संघ लोक सेवा आयोग की जगह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के ज़रिए भर्ती कर रही है। तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया कि यह कदम दलित विरोधी और संविधान विरोधी है, जो सामाजिक न्याय को नष्ट करने की कोशिश है।
आगे की कार्रवाई: यूपीएससी को अब 17 अगस्त के लेटरल एंट्री विज्ञापन को रद्द करना होगा। यह कदम सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। सरकार का उद्देश्य है कि भविष्य की सभी भर्ती प्रक्रियाएं संविधान के आदर्शों और आरक्षण के सिद्धांतों के अनुरूप हों।